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रोज़गार : वृद्धि, असंगठितरण और अन्य मुद्दे

by Md Taj

रोज़गार : वृद्धि, असंगठितरण और अन्य मुद्दे

🔷 प्रस्तावना

रोज़गार किसी भी देश की आर्थिक स्थिरता और सामाजिक संतुलन का एक महत्वपूर्ण आधार है। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए यह न केवल आय का माध्यम है, बल्कि सामाजिक सुरक्षा, गरिमा और समानता का भी प्रतीक है। पिछले कुछ दशकों में भारत ने तेज़ आर्थिक विकास के अनेक आयाम छुए हैं, लेकिन इस विकास के साथ-साथ रोज़गार की गुणवत्ता, असंगठित क्षेत्र में बढ़ोतरी और बेरोज़गारी जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे भी सामने आए हैं।


📈 रोजगार वृद्धि की वर्तमान स्थिति

✅ आर्थिक विकास बनाम रोज़गार वृद्धि

इसके प्रमुख कारण:

  1. स्वचालन और तकनीकी परिवर्तन: मशीनों और तकनीक के कारण मानवीय श्रम की आवश्यकता कम होती जा रही है।

  2. सेवा क्षेत्र में केंद्रित विकास: IT, बैंकिंग और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में नौकरियाँ तो बनी हैं, पर इनमें अनुभव और कौशल की बड़ी मांग होती है, जिससे बड़ी आबादी इससे वंचित रह जाती है।

  3. कृषि क्षेत्र में छिपी बेरोज़गारी: कृषि में कार्यरत लोग पूरे समय काम में नहीं लगे होते, जिससे “अप्रत्यक्ष बेरोज़गारी” बनी रहती है।


🔍 असंगठितरण (Informalisation) की चुनौती

भारत में लगभग 90% कार्यबल असंगठित क्षेत्र में कार्य करता है। इसका मतलब है कि इन लोगों को कोई निश्चित वेतन, स्वास्थ्य बीमा, सामाजिक सुरक्षा, या रिटायरमेंट लाभ नहीं मिलता।

असंगठित क्षेत्र की विशेषताएँ:

  • स्थायित्व की कमी

  • श्रमिक अधिकारों की अनुपस्थिति

  • न्यूनतम मजदूरी का पालन नहीं

  • बाल श्रम और महिला श्रमिकों का शोषण

क्षेत्रीय उदाहरण:

  • निर्माण कार्य में मजदूरों को अक्सर ठेके पर रखा जाता है।

  • घरेलू कामगार, जो किसी कानूनी दायरे में नहीं आते।

  • सड़क विक्रेता और रिक्शा चालक, जिनकी आय अस्थिर होती है।


📉 बेरोज़गारी की विविध समस्याएं

🔹 शिक्षित बेरोज़गारी

शिक्षा प्राप्त युवाओं की संख्या बढ़ी है, पर उनके अनुसार रोजगार नहीं मिल पा रहा। डिग्री के बावजूद वे या तो बेरोज़गार हैं या अपनी योग्यता से कमतर कार्य कर रहे हैं।

🔹 संरचनात्मक बेरोज़गारी

जब किसी व्यक्ति के पास काम करने की इच्छा और क्षमता तो होती है, लेकिन उसके पास उस क्षेत्र में आवश्यक कौशल नहीं होता, तो उसे संरचनात्मक बेरोज़गारी कहते हैं।

🔹 मौसमी बेरोज़गारी

विशेषकर कृषि क्षेत्र में, किसान साल के कुछ महीनों में ही कार्यरत होते हैं और बाकी समय खाली रहते हैं।


👩‍💼 महिला श्रमिकों की भागीदारी

भारत में महिला श्रमिक भागीदारी पिछले कुछ वर्षों में घटी है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ कृषि और घरेलू कार्यों में व्यस्त रहती हैं, लेकिन उन्हें ‘औपचारिक रोजगार’ में नहीं गिना जाता।

मुख्य कारण:

  • सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतिबंध

  • कार्यस्थल पर असुरक्षा

  • मातृत्व के लिए पर्याप्त अवकाश और सुविधाओं की कमी

  • लचीले कार्य समय और बाल देखभाल की सुविधा का अभाव


🧠 कौशल विकास की कमी

आज भी भारत की एक बड़ी जनसंख्या के पास वास्तविक उद्योगों के अनुरूप कौशल नहीं है। स्किल डवलपमेंट की योजनाएँ शुरू तो हुई हैं, लेकिन इनका प्रभाव अब तक सीमित है।

कौशल अंतराल के प्रभाव:

  • उपलब्ध नौकरियों के लिए योग्य उम्मीदवार नहीं मिलते

  • अप्रशिक्षित श्रमिकों को कम वेतन और अस्थायी नौकरी मिलती है

  • विदेशी निवेशकों को प्रशिक्षित कार्यबल न मिलने से औद्योगिक निवेश प्रभावित होता है

सरकारी प्रयास और योजनाएं

✅ प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)

इस योजना के तहत युवाओं को विभिन्न उद्योगों के लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाता है। हालांकि, इसके परिणाम सीमित रहे हैं।

✅ मनरेगा (MGNREGA)

यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम 100 दिन का रोज़गार सुनिश्चित करती है, लेकिन यह अस्थायी और अल्पकालिक समाधान है।

✅ ई-श्रम पोर्टल

भारत सरकार ने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को पंजीकृत करने के लिए ई-श्रम पोर्टल शुरू किया है। यह भविष्य में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने में सहायक हो सकता है।


🌏 वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत

दुनिया के अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारत में कार्यशील जनसंख्या की संख्या अधिक है, जिसे “डेमोग्राफिक डिविडेंड” कहा जाता है। लेकिन यदि इस जनसंख्या को उत्पादक और संगठित रोज़गार में नहीं बदला गया, तो यह लाभ संकट में बदल सकता है।


🛠️ समाधान और नीति सुझाव

1. औपचारिकरण को बढ़ावा

  • श्रमिकों का पंजीकरण अनिवार्य किया जाए

  • न्यूनतम वेतन और श्रमिक सुरक्षा कानूनों को कड़ाई से लागू किया जाए

2. कौशल विकास को स्थानीय स्तर पर पहुँचाना

  • हर जिले में स्किल ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना

  • इंडस्ट्री के साथ साझेदारी कर रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण

3. महिलाओं के लिए अनुकूल कार्य नीति

  • कार्यस्थल पर सुरक्षा और समान वेतन की गारंटी

  • मातृत्व लाभ और बाल देखभाल की सुविधा

4. स्टार्टअप और MSME को बढ़ावा देना

  • युवाओं को स्वरोज़गार के लिए प्रोत्साहित करना

  • कम ब्याज दर पर ऋण और व्यवसायिक मार्गदर्शन

5. डिजिटल साक्षरता का विस्तार

  • ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से रोजगार के अवसर


🧾 निष्कर्ष

भारत जैसे देश के लिए रोजगार केवल आर्थिक विषय नहीं, बल्कि सामाजिक समानता, समावेशिता और मानवाधिकार से भी जुड़ा हुआ मुद्दा है। जब तक रोजगार की वृद्धि को गुणवत्तापूर्ण, स्थायी और समावेशी नहीं बनाया जाएगा, तब तक विकास अधूरा रहेगा।

सरकार, उद्योग और समाज – सभी को मिलकर एक ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जहाँ हर व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार कार्य और सम्मान मिल सके। तभी भारत अपने डेमोग्राफिक डिविडेंड का वास्तविक लाभ उठा पाएगा।

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